वांछित मन्त्र चुनें

अ॒पो दि॒व्या अ॑चायिषं॒ रसे॑न॒ सम॑पृक्ष्महि। पय॑स्वानग्न॒ आग॑मं॒ तं मा॒ सं सृ॑ज॒ वर्च॑सा ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप: । दिव्या: । अचायिषम् । रसेन । सम् । अपृक्ष्महि । पयस्वान् । अग्ने । आ । अगमम् । तम् । मा । सम् । सृज । वर्चसा ॥५.४६॥

अथर्ववेद » काण्ड:10» सूक्त:5» पर्यायः:0» मन्त्र:46


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

शत्रुओं के नाश का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (दिव्याः) दिव्य गुण स्वभाववाले (अपः) जलों [के समान शुद्ध करनेवाले विद्वानों] को (अचायिषम्) मैंने पूजा है (रसेन) पराक्रम से (सम् अपृक्ष्महि) हम संयुक्त हुए हैं। (अग्ने) हे विद्वान् ! (पयस्वान्) गतिवाला मैं (आ अगमम्) आया हूँ (तम्) उस (मा) मुझको (वर्चसा) [वेदाध्ययन आदि के] तेज से (सम् सृज) संयुक्त कर ॥४६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य उद्योग करके विद्वानों से और वेद आदि शास्त्रों से विद्या प्राप्त करके यशस्वी होवें ॥४६॥ यह मन्त्र आ चुका है-अ० ७।८९।१ ॥
टिप्पणी: ४६−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।८९।१ ॥