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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (ब्राह्मणान्) ब्राह्मणों [ब्रह्मज्ञानियों] की ओर (अभ्यावर्ते) मैं घूमता हूँ। (ते) वे (मे) मुझे (द्रविणम्) बल और (ते) वे (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मण [ब्रह्मज्ञानी] का प्रताप (यच्छन्तु) देवें ॥४१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य ब्रह्मज्ञानियों के सत्सङ्ग से ऐश्वर्य और ब्रह्मज्ञान प्राप्त करे ॥४१॥
टिप्पणी: ४१−(ब्राह्मणान्) ब्रह्मज्ञानिनः पुरुषान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥