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ब्रह्मा॒भ्याव॑र्ते। तन्मे॒ द्रवि॑णं यच्छन्तु॒ तन्मे॑ ब्राह्मणवर्च॒सम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ब्रह्म । अभिऽआवर्ते । तत् । मे । द्रविणम् । यच्छतु । तत् । मे । ब्राह्मणऽवर्चसम् ॥५.४०॥

अथर्ववेद » काण्ड:10» सूक्त:5» पर्यायः:0» मन्त्र:40


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्म) ब्रह्म [परमेश्वर] की ओर (अभ्यावर्ते) मैं घूमता हूँ। (तत्) वह [ब्रह्म] (मे) मुझे (द्रविणम्) बल और (तत्) वह (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मण [ब्रह्मज्ञानी] का प्रताप (यच्छतु) देवे ॥४०॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य ब्रह्मज्ञान से ब्राह्मणसमान बलवान् और प्रतापी होवें ॥४०॥
टिप्पणी: ४०−(ब्रह्म) प्रवृद्धं परमेश्वरम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥