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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (वरणेन) वरण [स्वीकार करने योग्य वैदिक बोध वा वरना औषध] द्वारा (प्रव्यथिताः) पीड़ित किये गये (मे) मेरे (भ्रातृत्याः) वैरी लोग (सबन्धवः) अपने बन्धुओं सहित (असूर्तम्) न जाने योग्य (रजः) लोक [देश] में (अपि) ही (अगुः) गये हैं। (ते) वे लोग (अधमम्) अति नीचे (तमः) अन्धकार में (यन्तु) जावें ॥९॥
भावार्थभाषाः - सर्वनियन्ता परमेश्वर द्वारा और बलवान् राजा की नीति से दुष्ट लोग सदा बन्दीगृह आदि भोगते रहे हैं और सदा भोगते रहें ॥९॥
टिप्पणी: ९−(वरणेन) म० १। श्रेष्ठेन (प्रव्यथिताः) अतिपीडिताः (भ्रातृव्याः) शत्रवः (मे) मम (सबन्धवः) बान्धवैः सहिताः (असूर्तम्) नसत्तनिषत्तानुत्त०। पा० ८।२।६१। नञ्+सृ गतौ-क्त, ऋकारस्य उत्वम्। असरणीयमगन्तव्यम् (रजः) लोकम् (अपि) एव (अगुः) प्रापुः (ते) शत्रवः (यन्तु) गच्छन्तु (अधमम्) अतिनीचम् (तमः) अन्धकारम् ॥