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व॑र॒णो वा॑रयाता अ॒यं दे॒वो वन॒स्पतिः॑। यक्ष्मो॒ यो अ॒स्मिन्नावि॑ष्ट॒स्तमु॑ दे॒वा अ॑वीवरन् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वरण: । वारयातै । अयम् । देव: । वनस्पति: । यक्ष्म: । य: । अस्मिन् ।आऽविष्ट: । तम् । ऊं इति । देवा: । अवीवरन् ॥३.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:10» सूक्त:3» पर्यायः:0» मन्त्र:5


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह (देवः) दिव्यगुणवाला (वनस्पतिः) सेवनीय गुणों का रक्षक (वरणः) वरण [वैदिक बोध वा वरना औषध] [उस राजरोग को] (वारयातै) हटावे (यः) जो (यक्ष्मः) राजरोग (अस्मिन्) इस [पुरुष] में (आविष्टः) प्रवेश कर गया है, (तम्) उस को (उ) निश्चय करके (देवाः) व्यवहार जाननेवाले विद्वानों ने (अवीवरन्) हटाया है ॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्वज विद्वानों के समान प्रयत्न करके आत्मिक और शारीरिक रोगों का नाश करे ॥५॥ यह मन्त्र आ चुका है-अथर्व० ६।८५।१ ॥
टिप्पणी: ५−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अथर्व० ६।८५।१ ॥