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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम् अयम्) यही [वरण] (ते) तेरे लिये (वितताम्) फैली हुई (कृत्याम्) हिंसा को (पौरुषेयात्) मनुष्य से किये हुए (भयात्) भय से, और (अयम्) यह (वरणः) वरण [वैदिक बोध वा वरना औषध ही] (त्वा) तुझको (सर्वस्मात्) सब (पापात्) पाप से (वारयिष्यते) रोकेगा ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य वैदिक ज्ञान और पथ्य खान-पान से बलवान् होवें ॥४॥
टिप्पणी: ४−(अयम्) (ते) तुभ्यम् (कृत्याम्) अ० ४।९।५। हिंसाम् (वितताम्) विस्तृताम् (पौरुषेयात्) अ० ७।१०५।१। पुरुषेण कृतात् (भयात्) दरात् (अयम्) (त्वा) सर्वस्मात् (पापात्) दुःखात् (वरणः) म० १। वैदिकबोधो वरुणौषधं वा (वारयिष्यते) वृञ् आवरणे−लृट्। प्रतिरोत्स्यति ॥